हे पार्थ!यः एनम् अविनाशिनम् नित्यम् अजम् अव्ययम् वेद,
सः पुरुषः कथम् कम् घातयति, कम् हन्ति ?
vedāvināśinaṁ nityaṁ
ya enam ajam avyayam
kathaṁ sa puruṣaḥ pārtha
kaṁ ghātayati hanti kam
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ya enam ajam avyayam
kathaṁ sa puruṣaḥ pārtha
kaṁ ghātayati hanti kam
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- वेद = knows
- अविनाशिनं = indestructible
- नित्यं = always existing
- यः = one who
- एनं = this (soul)
- अजं = unborn
- अव्ययं = immutable
- कथं = how
- सः = that
- पुरुषः = person
- पार्थ = O Partha (Arjuna)
- कं = whom
- घातयति = causes to hurt
- हन्ति = kills
- कं = whom.
- Hindi translation by Swami Ram Sukhdasहे पृथानन्दन! जो मनुष्य इस शरीरीको अविनाशी, नित्य, जन्मरहित और अव्यय जानता है, वह कैसे किसको मारे और कैसे किसको मरवाये? ।।2.21।।
- English translation by Swami Sivananda Whosoever knows It to be indestructible, eternal, unborn and inexhaustible, how can that man slay, O Arjuna, or cause to be slain?
- आत्मा की वर्णनात्मक परिभाषा नहीं दी जा सकती परन्तु उसका संकेत नित्य अविनाशी आदि शब्दों के द्वारा किया जा सकता है। यहाँ इस श्लोक में प्रश्नार्थक वाक्य के द्वारा पूर्व श्लोकों में प्रतिपादित सिद्धान्त की ही पुष्टि करते हैं कि जो पुरुष अविनाशी आत्मा को जानता है, वह कभी जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने में शोकाकुल नहीं होता।आत्मा के अव्यय,अविनाशी, अजन्मा और शाश्वत स्वरूप को जान लेने पर कौन पुरुष स्वयं पर कर्तृत्व का आरोप कर लेगा ? भगवान् कहते हैं कि ऐसा पुरुष न किसी को मारता है और न किसी के मरने का कारण बनता है। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि इस वाक्य का सम्बन्ध स्वयं भगवान् तथा अर्जुन दोनों से ही है। यदि अर्जुन इस तथ्य को स्वयं समझ लेता है, तो उसे स्वयं को अजन्मा आत्मा का हत्यारा मानने का कोई प्रश्न नहीं रह जाता है।किस प्रकार आत्मा अविनाशी है ? अगले श्लोक में एक दृष्टांत के द्वारा इसे स्पष्ट करते हैं -- ।।2.21।।
The enlightened sage who knows the immutable and indestructible Self through direct cognition or spiritual Anubhava (experience) cannot do the act of slaying. He cannot cause another to slay also.