Thursday, May 29, 2014

Chapter 2 Shloka 13


    देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||२-१३|| देहिनः अस्मिन् यथा देहे कौमारम् यौवनम् जरा | तथा देहान्तर-प्राप्तिः धीरः तत्र न मुह्यति ||२-१३|| देहिनः अस्मिन् देहे यथा कौमारम् यौवनम् जरा, तथा देहान्तर-प्राप्तिः | तत्र धीरः न मुह्यति |

    
    
      देहीनः = of the embodied अस्मिन् = in this यथा = as देहे = in the body कौमारं = boyhood यौवनं = youth जरा = old age तथा = similarly देहान्तर = of transference of the body प्राप्तिः = achievement धीरः = the sober तत्र = thereupon न = never मुह्यति = is deluded.

       
    Hindi translation by Swami Ram Sukhdas
    देहधारीके इस मनुष्यशरीरमें जैसे बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, ऐसे ही देहान्तरकी प्राप्ति होती है। उस विषयमें धीर मनुष्य मोहित नहीं होता ।।2.13।।
    English translation by Swami Sivananda

    2.13 Just as in this body the embodied (soul) passes into childhood, youth and old age, so also does it pass into another body; the firm man does not grieve thereat. 
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    Hindi commentary by Swami Chinmayananda 
    स्मृति का यह नियम है कि अनुभवकर्त्ता तथा स्मरणकर्त्ता एक ही व्यक्ति होना चाहिये, तभी किसी वस्तु का स्मरण करना संभव है। मैं आपके अनुभवों का स्मरण नहीं कर सकता और न आप मेरे अनुभवों का, परन्तु हम दोनों अपने-अपने अनुभवों का स्मरण कर सकते हैं।वृद्धावस्था में हम अपने बाल्यकाल और यौवन काल का स्मरण कर सकते हैं। कौमार्य अवस्था के समाप्त होने पर युवावस्था आती है और तत्पश्चात् वृद्धावस्था। अब यह तो स्पष्ट है कि वृद्धावस्था में व्यक्ति के साथ कौमार्य और युवा दोनों ही अवस्थायें नहीं हैं, फिर भी वह उन अवस्थाओं में प्राप्त अनुभवों को स्मरण कर सकता है। स्मृति के नियम से यह सिद्ध हो जाता है कि व्यक्ति में कुछ है जो तीनों अवस्थाओं में अपरिवर्तनशील है, जो बालक और युवा शरीर द्वारा अनुभवों को प्राप्त करता है तथा उनका स्मरण भी करता है।इस प्रकार देखने पर यह ज्ञात होता है कि कौमार्य अवस्था की मृत्यु युवावस्था का जन्म है और युवावस्था की मृत्यु ही वृद्धावस्था का जन्म है। और फिर भी निरन्तर होने वाले इन परिवर्तनों से हमें किसी प्रकार का शोक नहीं होता बल्कि इन अवस्थाओं से गुजरते हुये असंख्य अनुभवों को प्राप्त कर हम प्रसन्न ही होते हैं।जगत् में प्रत्येक व्यक्ति के इस निजी अनुभव का दृष्टान्त के रूप में उपयोग करके श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाना चाहते हैं कि बुद्धिमान पुरुष जीवात्मा के एक देह को छोड़कर अन्य शरीर में प्रवेश करने पर शोक नहीं करता।पुनर्जन्म के सिद्धान्त के पीछे छिपे इस सत्य को यह श्लोक और अधिक दृढ़ करता है। अत: बुद्धिमान पुरुष के लिये मृत्यु का कोई भय नहीं रह जाता। बाल्यावस्था आदि की मृत्यु होने पर हम शोक नहीं करते, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा अस्तित्व बना रहता है और हम पूर्व अवस्था से उच्च अवस्था को प्राप्त कर रहे हैं। उसी प्रकार एक देह विशेष को त्याग कर जीवात्मा अपनी पूर्व वासनाओं के अनुसार अन्य देह को धारण करता है। इस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता है ।।2.13।।
    English commentary by Swami Sivananda
    2.13 देहिनः of the embodied (soul), अस्मिन् in this, यथा as, देहे in body, कौमारम् childhood, यौवनम् youth, जरा old age, तथा so also, देहान्तरप्राप्तिः the attaining of another body, धीरः the firm, तत्र thereat, न not, मुह्यति grieves.Commentary -- Just as there is no interruption in the passing of childhood into youth and youth into old age in this body, so also there is no interruption by death in the continuity of the ego. The Self is not dead at the termination of the stage, viz., childhood. It is certainly not born again at the beginning of the second stage, viz., youth. Just as the Self passes unchanged from childhood to youth and from yourth to old age, so also the Self passes unchanged from one body into another. Therefore, the wise man is not at all distressed about it. 

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